आज सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा कदम उठाते हुए आदेश तक तीन कृषि कानूनों को लागू करने पर रोक लगा दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने संसद द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों को चुनौती देने और दिल्ली की सीमाओं से किसानों को हटाने की कई याचिकाओं पर मंगलवार (जनवरी 12, 2021) को सुनवाई की। इस सुनवाई में बच्चों, महिलाओं का आंदोलन का हिस्सा होने व शामिल होने को लेकर हुआ निर्णय किसानों की मुश्किल बढ़ा सकता है। वहीं कोर्ट ने आंदोलन की विविधता व व्यापकता को जांचने व परखने के लिए अपनी समझ को बढ़ाने के लिए एक कमेटी के गठन का निर्णय भी लिया है जबकि किसान संगठनों ने इसका हिस्सा होने व भाग लेने से पूर्णतः मना कर दिया है।सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा, “कानून पर हम एक समिति बना रहे हैं ताकि हमारे पास एक स्पष्ट तस्वीर हो। हम यह तर्क नहीं सुनना चाहते कि किसान समिति में नहीं जाएँगे। हम समस्या को हल करना चाहते हैं।

यदि आप (किसान) अनिश्चित काल के लिए आंदोलन करना चाहते हैं, तो आप ऐसा कर सकते हैं।”कमिटी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया, “यह कमिटी हमारे लिए होगी। इस मुद्दे से जुड़े लोग कमिटी के सामने पेश होंगे। कमिटी कोई आदेश नहीं देगी, न ही किसी को सजा देगी। यह सिर्फ हमें रिपोर्ट सौंपेगी। हमें कृषि कानूनों की वैधता की चिंता है। साथ ही किसान आंदोलन से प्रभावित लोगों की जिंदगी और संपत्ति की भी फिक्र करते हैं। हम अपनी सीमाओं में रह कर मुद्दा सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं।”चीफ जस्टिस ने पूछा कि उनके पास एक आवेदन है, जिसमें कहा गया है कि प्रतिबंधित संगठन इस प्रदर्शन में मदद कर रहे हैं। क्या अटॉर्नी जनरल इसे मानेंगे या इनकार करेंगे? इस पर अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि प्रदर्शन में खालिस्तानियों की घुसपैठ है। इस पर कोर्ट ने कहा कि ऐसा है, तो ऐसे में केंद्र सरकार कल तक हलफनामा दे। जवाब में अटॉर्नी जनरल ने बताया कि वो हलफनामा देंगे और आईबी रिकॉर्ड भी देंगे।दरअसल, किसान आंदोलन के पीछे से हो रही राजनीति को कोर्ट ने पूरी तरह बेनकाब कर दिया है। ऐसा तब लगा जब पिछली सुनवाइयों में प्रशांत भूषण जैसे वकीलों की उपस्थिति रही लेकिन आज की सुनवाई में अनुपस्थित बहुत कुछ कह देती है। कुल मिलाकर आज का निर्णय तथाकथित किसान आंदोलन के तथाकथित अगुवाई करने वालों की मुश्किलें बढ़ा दी है। वहीं, केंद्र सरकार को इस मुद्दे से लड़ने की ताकत भी दे दिया है। कानून का स्थगन कोई बहुत बड़ा झटका नहीं है। वैसे भी यह कानून राज्यों को मानने के लिए बाध्य नहीं करता है।