अफीम की देन है मणिपुर की हिंसा।

भारत का पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर पिछले कुछ महीनों से जल रहा है वहां बड़े पैमाने पर हिंसा हुई है जिसके कारण वह सुर्खियों में है जबकि इसको लेकर देश की संसद में कई दिनों तक कामकाज बिल्कुल ठप्प पड़ गया था। जानकारी के मुताबिक वहां अब तक लगभग डेढ़ सौ जानें गईं और सैकड़ों मकान फूंक डाले गए। लाखों लोगों ने जान बचाकर राहत शिविरों में शरण ली या दूसरे राज्यों में पलायन कर गए। वहां रहने वाले मैतेई और कुकी जनजाति के बीच परस्पर भरोसे की दीवार ढह गई। हालांकि दोनों समुदाय पहले से ही एक-दूसरे को संदेह की दृष्टि से देख रहे थेलेकिन इन जातीय दंगों ने उनके बीच अब बड़ी खाई खोद दी है। दोनों प्रमुख समुदायों में नफरत की भावना इस कदर घर कर गई है कि दोनों एक-दूसरे को देखना भी नहीं चाहते। वहीं, जानकारों का मानना है कि मणिपुर की इस अभूतपूर्व हिंसा का एक कारण है अफीम की अवैध खेती और ड्रग्स तस्करीजिसमें न केवल कुकी जनजाति के लोगबल्कि सत्तारूढ़ दल के कुछ सदस्यों के रिश्तेदार भी शामिल हैं।

मणिपुर अफीम तस्करी के लिए आजादी के समय से ही जाना जाता रहा है। यह चीनबांग्लादेश और म्यांमार का पड़ोसी है। म्यांमार से न केवल बड़े पैमाने पर अफीम कीबल्कि हशीश और मेथा नाम की नशीली दवा की तस्करी भारत में होती है। म्यांमार-मणिपुर सीमा 1,640 किलोमीटर लंबी हैजहां सतत निगरानी मुश्किल है। चूंकि यह पहाड़ी और दुर्गम जंगलों का इलाका हैइसलिए इन्हीं रास्तों से यहां अफीम आती रही है। हालांकि बाद में मणिपुर में धड़ल्ले से अफीम की अवैध खेती होने लगी। सरकारी अनुमानों के अनुसारवहां लगभग 15,400 एकड़ भूमि पर अफीम की खेती हो रही है। हालांकि वहां कई बार अफीम की फसल नष्ट करने का व्यापक अभियान चलाया गयालेकिन उसे रोका नहीं जा सका है। राज्य सरकार को दो-दो मोर्चों पर जूझना पड़ रहा है। एक ओर अवैध अफीम की खेती को नष्ट करनादूसरी तरफ म्यांमार से आने वाले ड्रग्स पर अंकुश लगानाजिसमें अफीम भी शामिल है। इस खेल में बहुत से भागीदारों के होने के कारण यह मसला और जटिल हो गया है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या है म्यांमार से अफीम व अन्य मादक पदार्थों की तस्करीजिसमें वहां के सैन्य शासक का भी दखल है।

दुनिया के दूसरे सबसे बड़े अफीम उत्पादक देश म्यांमार की सीमाएं भारत और चीनदोनों से मिलती हैं। थाईलैंड और लाओस भी इसके पड़ोसी देश हैं। ये उस कुख्यात ड्रग तस्करी क्षेत्र का हिस्सा हैजिसे स्वर्ण त्रिभुज कहते हैं और इसमें तीनों देश-लाओसथाईलैंड और म्यांमार शामिल हैं। इसका इतिहास बहुत पुराना है। यहां से तस्करी के जरिये अफीम पहले चीन में भी पहुंचाई जाती थीलेकिन कम्युनिस्ट शासन में वहां उसकी तस्करी कम हो गई। लेकिन भारतबांग्लादेश और थाईलैंड में बाकायदा इसकी आपूर्ति होती रही। साठ के दशक में तो वियतनाम युद्ध के दौरान वहां की अफीम अमेरिकी सैनिकों में बेहद लोकप्रिय हो गई थी। लेकिन वियतनाम युद्ध खत्म होते ही यह धंधा चौपट हो गया। उसके बाद से तस्करों ने बड़े पैमाने पर अफीम भारत भेजना शुरू किया। फिर मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में अफीम की खेती होने लगी। पहले की सरकार इसे अनदेखा करती रहींलेकिन बीरेन सिंह की भाजपा सरकार ने इस पर निशाना साधा। सरकारी एजेंसियों ने हजारों एकड़ में लगी अफीम की फसल जलानी शुरू कीजिससे स्थानीय लोगों में सरकार के खिलाफ काफी रोष पैदा हो गया। माना जाता है कि जातीय हिंसा का एक कारण यह भी बना और मैतेई तथा कुकी समुदायों के बीच दंगों की एक बड़ी वजह यही है। मणिपुर की ड्रग समस्या जटिल है और जनजातीय इलाकों में रहने वाले बहुत से लोग इसमें शामिल हैंक्योंकि इसमें मोटा पैसा आसानी से मिल जाता है। इसने कुकी जनजाति के एक बड़े वर्ग को प्रभावित किया हैजिसका गुस्सा मणिपुर की हिंसा में साफ दिखाई दे रहा है।

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